कुरुक्षेत्र, ( सुरेश पाल ) । होली द्वेष, ईष्र्या और अहंकार को जलाकर आपसी प्यार और विश्वास बढाने का त्यौहार है। यह उद्गार गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने कृष्ण कृपा गौशाला परिसर में होली उत्सव पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
इस अवसर पर श्री कृष्ण कृपा गौशाला के प्रधान हंसराज सिंगाल, केडीबी सदस्य महेंद्र सिंगला, विजय नरूला, बृज गृप्ता करनाल, सुनील वत्स, रमाकांत शर्मा, पवन भारद्वाज, मंगतराम मैहता, मीनाक्षी नरूला, श्रीमति रंजना शर्मा, सविता वत्स, संगीता सिंगला सहित भारी सख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। गीता मनीषी ने कहा कि जितने भी पर्व हैं। उनके पीछे कोई न कोई रहस्य या प्रेरणा होती है। तीर्थ व त्योहार न होते तो शायद हम सनातन संस्कृति की समृद्ध परंपरा से वंचित रह जाते। तीर्थ और त्योहार गौरवशाली परंपरा को जोड़े रखते हैं। हर युग में अहंकार और विश्वास में टकराव होता है। होली भी इसी बात का प्रतीक है कि प्रह्लाद के विश्वास और होलिका अहंकार का टकराव हुआ और अंत में विजय विश्वास की हुई अहंकार पराजित हुआ।
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इसी प्रकार महाभारत काल में द्रोपदी का विश्वास जीता था और दुशासन का अहंकार हार गया था। होली के दिन भी हिरण्यकश्यप का अहंकार पराजित हुआ। जब भगवान की कृपा की अनुकूल वायु चलती है तो विश्वास की विजय होती है। इस प्रकार यह पर्व एक प्रेरणा है, प्रभु का विश्वास निखर कर सामने आता है। उन्होंने श्रद्धालुओं से अपील की कि वे ईष्र्या, द्वेष व अहंकार की होली जलाएं। सहनशाीलता और शंाति प्रभु के विश्वास से ही आती है।
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