सत्संग और ध्यान बहुत धूम-धाम से हुआ संपन्न
December 31st, 2024 | Post by :- | 30 Views

■ पुरुषार्थ करना है और अहोभाव में जीना है : समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया
समर्थगुरु धाम संस्थान मुरथल,हरियाणा के संस्थापक आदरणीय समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया जी की कृपा से 30 दिसम्बर 2024 को गवर्मेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल, पिपली , कुरुक्षेत्र प्रदेश में सत्संग और ध्यान बहुत धूम-धाम से संपन्न हुआ। लगभग 600 बच्चों और अध्यापक गण ने हिस्सा लिया।श्री दुर्गा देवी मन्दिर, पिपली कुरुक्षेत्र के पीठाधीश व समर्थगुरु संघ, हिमाचल के जोनल कोऑर्डिनेटर आचार्य डा.सुरेश मिश्रा ने सभी अध्यापक ,स्टॉफ एवं बच्चों को सनातन धर्म की वैज्ञानिकता और मुद्रा विज्ञान से एकाग्रता कैसे बढ़ाए विषय पर प्रकाश डालते हुए ब्रह्म ध्यान का प्रयोग करवाया।
हम सभी को अपने माता पिता , आचार्यग़ण , गुरुजनों , देवी देवताओं के साथ अपनी मातृभूमि भारत का प्रतिदिन हार्दिक धन्यवाद करना चाहिए। सभी का मंगल हो यह प्रार्थना करे और प्रतिदिन अपने परिवार के साथ अपने घर में सुबह शाम आरती करने से घर का अच्छा वातावरण तथा सकारात्मक औरा बढ़ता है ।संपूर्ण संसार में सभी की विशेषताएं है इसलिए हमें सद्गुणों को विकसित करना है। ज्ञान मुद्रा का प्रयोग प्रतिदिन करने के एकाग्रता बढ़ती है। ध्यान करने से आत्म विकास होता है।
अध्यात्म हमें शिकायत से धन्यवाद और अहोभाव में जीना सिखाता है। सभी अध्यापक और विद्यार्थियों का फीड बैक उत्साह वर्धक रहा एवं आगे भी इसी तरह के प्रोग्राम करवाने का निवेदन किया ।
अध्यापक श्री कृष्ण चन्द, अध्यापिका डा. ऋचा त्रिवेदी, और प्रधानाचार्य श्रीमती शशि किरण और छात्राओं का विशेष विद्यार्थियों के लिए संबोधन और हार्दिक योगदान सराहनीय रहा।
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय , पिपली, कुरुक्षेत्र की प्रिंसिपल श्रीमती शशि किरण को समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया जी द्वारा रचित मुद्रा विज्ञान ,संपूर्ण अध्यात्म, वात्सल्य प्रज्ञा,दाम्पत्य प्रज्ञा और जिज्ञासुओं के लिए पुस्तकों को भेंट किया गया। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय की प्रधानाचार्य श्रीमति शशि किरण , ऋचा त्रिवेदी, नीरू,श्री कृष्ण चन्द और स्टाफ सदस्यों की ओर आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा को मोमेंटम देकर सम्मानित किया गया।
ट्विटर के माध्यम से समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया जी ने बताया कि अहोभाव में जीना है। तो पुरुषार्थ करना है और अहोभाव में जीना है। गुरु के ग्रेटीट्यूड में, गुरु के अहोभाव में, गोविंद के अहोभाव में। फिर अहोभाव को हमें अपने जीवन की शैली बना लेना है।

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